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लेखनी कहानी -30-Dec-2022 देवदासी

देवदासी : एक परिचय 


रात के दूसरे पहर में जब रातरानी अपने पूर्ण यौवन पर होती है । अपनी महक के आगोश में वह अपने आस पास के समस्त प्राणियों को समेट लेती है । चारों ओर खुशबू का साम्राज्य फैल जाता है । अंधकार और भी विकराल रूप धारण कर लेता है । तब मय का नशा धीरे धीरे चढने लगता है । जैसे जैसे नशा चढता है वैसे वेसे विवेक खत्म होता जाता है । तब कुछ होश नहीं रहता है । काम रूपी ज्वर मनुष्य के सिर पर चढकर खूब उछल कूद करता है । ऐसे में जब कोई व्यक्ति कामान्ध हो जाता है तब उसे एक स्त्री में केवल मांसल उभार नजर आता है । उसे हर स्त्री भोग्या नजर आती है । रिश्तों की मर्यादा तार तार हो जाती है । 

बिरजू की स्थिति ऐसी ही थी । अपने कक्ष में बैठा बैठा कितनी दारू पी गया था वह, किसी को कुछ पता नहीं है । बोतलें खाली हो होकर लुढकती रही और सुरा उसके सिर पर चढकर नृत्य करती रही । रह रहकर उसकी आंखों के सामने श्यामा आ रही थी । उसका सौन्दर्य बिजली की तरह बिरजू की आंखों के सामने दमक रहा था । जब जब श्यामा मृदंग की थाप पर नृत्य करती थी तब तब उसके मांसल बदन से स्वर लहरियां सी उठती थी जो बिरजू के मन को तरंगित कर देती थी । उसका सुडौल वक्षस्थल संगीत के साथ साथ कदमताल करता था । कदमों के साथ साथ आंखों की पुतलायां और दोनों वक्ष भी भरपूर नृत्य करते थे । तब बिरजू का मन बेलगाम होकर दौड़ने लगता था । उसकी पतली कमर किस तरह थिरकती थी । आहा ! वो कैसे बताये कि उस पर क्या गुजरती थी । 

बिरजू के दिल दिमाग में देवदासी श्यामा घर कर गई थी । मद्य के नशे में बिरजू को केवल श्यामा देवदासी का मृदुल गात ही दिखाई दे रहा था । श्यामा का बदन बिरजू के लिए "वैतरणी" जैसा लग रहा था जिसमें वह आकण्ठ डूब जाना चाहता था । श्यामा रूपी सुंदर वैतरणी को पार करने के लिए उसमें डूबना आवश्यक शर्त है । नारी शरीर में डूबे बिना स्वर्ग कहां मिलता है ? धन दौलत , जमीन जायदाद से बढकर सौन्दर्य की दौलत होती है जो न केवल इंसानों बल्कि देवताओं के दिलों पर भी राज करती है । 

बिरजू की ख्वाहिश श्यामा का सौन्दर्य थी । श्यामा तक जाने के लिए उसे "ठाकुर जी" के सामने से जाना पड़ता था । इस नशे की हालत में क्या ठाकुर जी के सामने से निकल सकता है वह ? उसके मस्तिष्क में अनेक प्रश्न गूंजने लगे । लेकिन श्यामा का शरीर उसकी मंजिल है ठाकुर जी नहीं , उसका मन कहता । अपनी मंजिल पाने के लिए वह कुछ भी कर जायेगा । बिरजू के मन ने उसका भरपूर साथ दिया । "ठाकुर जी" को तो उसने सुला दिया था न ! फिर वे क्या देखेंगे ? उसका मन फिर कहता । 

बिरजू ने अपने सिर पर एक चपत लगाई और मन पर नियंत्रण करते हुए उसने श्यामा के कमरे की ओर दौड़ लगाई । रास्ते में ठाकुर जी के मंदिर के सामने से भी निकला था बिरजू लेकिन उसने ठाकुर जी की ओर देखा ही नहीं । अगर वह देख लेता और ठाकुर जी उसे पकड़ लेते तो ? फिर वह सौन्दर्य के सागर में कैसे डुबकी लगाता ? 

इसी उधेड़बुन में वह कब श्यामा के कक्ष में पहुंच गया उसे पता ही नहीं चला । सामने पलंग पर श्यामा बेसुध पड़ी हुई थी । दिन भर नृत्य करते करते कितनी थक जाती होगी श्यामा, उसके गहरी निद्रा में डूबे बदन को देखकर लग रहा था । या तो वह अपने किसी नये नृत्य के स्टेप्स तैयार करने में इतनी मग्न थी कि उसे दरवाजा बंद करना याद ही नहीं रहा और वह उसी तैयारी में ही पलंग पर निढाल होकर पड़ गई या फिर इस ओर कोई आता जाता नहीं था और वह यह सोचकर निष्फिक्र होकर सो गई थी । पर जो भी हो दरवाजा खुला हुआ था और बिरजू श्यामा के कक्ष में दाखिल हो चुका था । 

श्यामा के वस्त्र अस्त व्यस्त थे । उसका लहंगा घुटनों से ऊपर तक सरक गया था और कंचुकी ढीली होकर नीचे की ओर सरक गई थी । श्यामा का दूधिया बदन बिरजू को निमंत्रण दे रहा था । बिरजू तो कबसे उसे पाने का सपना देख रहा था पर उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी । आज मद्य ने उसकी हिम्मत बढा दी थी और अब वह शेर की तरह वीर बन चुका था । बिरजू की सांसें तेज तेज चलने लगी । 

स्त्रयां कभी भी घोड़े बेचकर नहीं सोती हैं । और जवान कुंवारी स्त्री को तो वैसे भी बहुत गहरी नींद नहीं आती है । यौवन रूपी दौलत लेकर वह निर्विघ्न कैसे सो सकती है जबकि कदम कदम पर अस्मत के लुटेरे घात लगाकर उसके आसपास बैठे हों । स्त्रियों की छठी इंद्रिय सदैव जाग्रत रहती है । जब भी वह खतरे को अनुभव करती है तुरंत उसकी छठी इंद्रिय उसे सतर्क कर देती है । शायद श्यामा की छठी इंद्रिय ने उसे सतर्क कर दिया था तभी तो वह भरभराकर उठ खड़ी हुई  थी । सामने बिरजू को देखकर वह चौंक गई थी । उसने ऐसे मंजर की कल्पना नहीं की थी । उसने अपने अस्त व्यस्त कपड़े ठीक किये और खड़ी हो गई । बिरजू ने आगे बढकर उसे बांहों में कसना चाहा तो श्यामा मछली की तरह फिसलकर एक ओर हट गई । वह सिंहनी की तरह गरज उठी ।
"ये सब क्या है बिरजू बाबू ? आप इस वक्त मेरे कमरे में क्या कर रहे हैं ? जरा भी शर्म नहीं है तुम्हारे अंदर जो रात के बारह बजे एक जवान स्त्री के कक्ष में आवारों की तरह चले आये ? निकल जाओ यहां से" उसकी आंखें चिंगारियां बरसाने लगी थी । 

बेशर्म बिरजू अट्टहास करने लगा । मद्य और "काम वासना" का नशा उस पर चढ चुका था । उसे श्यामा एक देवदासी नहीं बल्कि भोग्या नजर आ रही थी । उसने आगे बढकर श्यामा को फिर से अपनी गिरफ्त में लेना चाहा मगर श्यामा फिर से फिसलकर उसकी गिरफ्त से दूर हो गई । 
"मैं एक देवदासी हूं बिरजू बाबू , आपकी रखैल नहीं हूं । आप शायद भूल रहे हैं कि मैं एक ब्याहता स्त्री हूं । मेरा विवाह ठाकुर जी के साथ हुआ है किसी ऐरे गैरे के साथ नहीं । मेरे पति ठाकुर जी हैं और मैं उनकी पत्नी हूं । तुम ब्राम्हण और पुजारी होकर भी ऐसी नीच हरकत करोगे, मुझे विश्वास नहीं था । अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है । चुपचाप यहां से चले जाओ अन्यथा मैं शोर मचा दूंगी" । श्यामा के स्वर में आक्रोश था और उसने आलमारी में रखी अपनी कटार निकाल ली थी । 
मजबूरी में बिरजू को पीछे हटना पड़ा । 

ये एक झलक भर है मेरी आगामी रचना "देवदासी" की । कैसे श्यामा एक देवदासी बनी और कैसे बिरजू पैसों के लोभ में गिरता ही चला गया । बिरजू के पिता सत्य प्रकाश और उनके पुरखों ने गांव में अपने आचरण और कर्म से जो प्रतिष्ठा कमाई थी उसे बिरजू के लालच में पल भर में गंवा दिया । क्या वह प्रतिष्ठा लौट पायेगी ? क्या श्यामा बिरजू की रखैल और पूरे गांव की वेश्या बन जायेगी ? यह जानने के लिए पढें मेरी आगामी रचना "देवदासी" 
धन्यवाद 
श्री हरि 
30.12.22 

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8 Comments

HARSHADA GOSAVI

03-Jul-2023 03:24 PM

awesome

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HARSHADA GOSAVI

03-Jul-2023 03:23 PM

very nice

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madhura

27-May-2023 11:22 AM

nice

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